विस्तारवादी चीन
की नजर उत्तराखंड की सीमा पर भी
· उत्तराखंड स्थित बाडाहोती, काश्मीर व अरुणांचल की सीमाओं पर आए दिन होता है विवाद
· चीन के नेपाल से बढ़ते मधुर संबंध बन सकता है खतरा
· उत्तराखंड की सीमाओं से बढ़ते पलायन से खाली होते जा रहे है सीमावर्ती गाव
भारत का पाकिस्तान के बाद सबसे अधिक सीमा विवाद विस्तारवादी चीन के साथ है । उत्तराखंड, काश्मीर व अरुणांचल प्रदेश से लगाने वाली सीमाओं पर चीन हमेशा गतिविधियाँ करते रहता है. जिस कारण चीन के साथ आए दिन सीमा विवाद होते रहता है। वह हमेशा से ही इन क्षेत्र को अपना हिस्सा मानता आया है। उत्तराखंड की सीमाओं पर भी चीन की नजर है । इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती गतिविधियाँ खतरे की और संकेत कर रही है । वही उत्तराखंड की सीमाओं से बढ़ते पलायन से सीमा संकट और गहरा गया है।
उत्तराखंड नेपाल व चीन दो देशों की सीमाओं से घिरा हुआ है। चीन से उत्तराखंड की जाड गंगा के दक्षिण पश्चिम से लिपुलेख पास तक लगभग ४११ किलो मीटर लम्बी सीमा लगती है। उत्तराखंड की सीमा को चीन से ११ दर्रे (पास) मुइल्न्ग ला, मन्ना, निति, तुन्जुग ला, मार्थिला, सहशाला, बालाछा धुर, कुगरी बिगिरी, दारमा, लम्पिया धुर व लिपुलेख जोड़ते है। प्रदेश के उत्तरकाशी जिले में ४५० वर्ग किलो मीटर क्षेत्रफ़ल में स्थित बाडाहोती नामक स्थान पर चीन अपना अधिकार जताता है। आई दिन चीन इस इलाके में अतिक्रमण करते रहता है। कई बार इस नो मेंस लैंड पर चीन की सेनाए चहलकदमी करती रहती है। सब जानने के बाद भी सरकार बेबस ही दिखाई दे रही है। सामरिक दृष्टि से देखे तो चीन भारतीय सीमाओं पर अपनी स्तिथि लगातार मजबूत करते जा रहा है। जिससे उत्तराखंड की सीमा भी सुरक्षित नही है। जहाँ चीन ने इन सीमाओं पर सड़क, हाइवे व एअर बेस बना लिए है, वही राज्य चीन की सीमाओं से कोसों दूर है। अभी भी चीन सीमा पर पहुचने के लिए ५० से ७० किलो मीटर की दुर्गम पहाडिया व दर्रे पार करने पड़ते है, जबकि चीन को भारतीय सीमा पर घुसने में चंद मिनट का ही समय लगता है। चीन ने उत्तरकाशी जिले में स्थित बाडाहोती (नो मेंस लैंड ) को जोड़ने वाले दर्रे तुन्जुग ला, पिथोरागद के लिपुलेख तक हाइवे सहित कई दर्रों तक सड़के पंहुचा दी है.
रक्षा विशेषग्य सेवा निवृत्त ले. जे मोहन चंद्र भंडारी ने बताया की चीन व नेपाल सीमा से लगे होने के कारण उत्तराखंड सामरिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। अगर समय रहते हमने अपनी सीमाओं को मजबूत नही किया तो आने वाले समय पर चीन आसानी से उत्तराखंड की सीमाओं पर अतिक्रमण कर सकता है। उन्होंने बताया की चीन ने भारत को घेरने के लिए नेपाल से भी संबंध प्रगांड कर दिए है। भारत को घेरने के लिए उसने नेपाल की राजधानी काठमांडू व पोखरा तक हाइवे बना लिया है। उत्तराखंड, कश्मीर व अरुणांचल प्रदेश तीनोँ सीमाओं पर चीन की स्थिति भारत से मजबूत है। वही पलायन से पहाड़ की सीमाए भी असुरक्षित होती जा रही है। श्री भंडारी ने कहा की अगर समय रहते उतराखंड की दुर्गम सीमाओं को देखते हुई कोई ठोस सामरिक निति नही बनाई गई तो भयानक परिणाम सामने आयेंगे.
सीमाओं से लगे गांवों से हो रहा पलायन खतरे का संकेत
उत्तराखंड के सीमावर्ती गांवों से लगातार बढ़ रहा पलायन खतरे की और संकेत कर रहा है. चीन की ४११ व नेपाल की ३१५ किलो मीटर सीमा से लगे ६० फीसदी गाँव खाली हो चुके है। चीन सीमा से लगे चोदास, दारमा, व्यास, जोहार, निति, माना घाटियों के कई गाँव तो खाली हो गए है। इन क्षेत्रों में रहने वाले अन्य ग्रामीण भी धीरे-धीरे गांवों को खाली कर रहे है। यहाँ रहने वाले वासिंदों का कहना है के मूलभूत सुविधाओं बिजली, पानी, सड़क के अभाव में वह गाँव छोड़ने को मजबूर है। शासन प्रसाशन भी लगातार खाली होते गावों को आबाद कराने में असफल ही दिख रही है। अगर यही रहा तो वह दिन दूर नही जब हमारी सीमाए पूरी तरह खाली हो जाएगे.